प्यार,इश्क़, प्रेम का आज कल की भाषा में लगभग एक ही अर्थ होता है। जिस प्रकार बीज को उगने के लिए सही समय व पर्याप्त वातावरण चाहिए होता है ठीक वैसे ही इश्क़ को पनपने के लिए एक उम्र एक एक सख्स चाहिए होता है। किशोर अवस्था में हमउम्र के साथ ही ये पनपता है। यूं तो इस अनोखे से रस को मैंने भी चखा है ये बात अलग रही कि मेरा इश्क़ मुक़म्मल न हो सका। उन्हीं लम्हों को मैं यहां साझा करूँगा। 9th क्लास की बात थी मैं घर से बाहर पढ़ने के लिए गया एकदम अलग माहौल में पहले कभी घर भी नही छोड़ा था लेकिन अब सब कुछ एकदम अलग था। क्लास का पहला दिन था मैं बहुत सहमा हुआ कुछ अजीब सा डर भी था कि कैसे नए माहौल को सहन कर पाऊँगा। क्लास में सब विद्यार्थी नए थे किसी से कोई परिचय भी नही था। एक दम स्पष्ट तो नही पर न जाने कब कैसे कोई अनोखा सा चहरा मेरी आँखों मे गढ़-सा गया। कारवां चलता गया मुझे लगता था कि क्लास में मैं ही सबसे कमजोर हूँ लेकिन जल्द ही मासिक परीक्षाएं हुई में क्लास में 7वें नम्बर पर आया ये मेरे लिए काफी नही था लेकिन मैंने बहुतों का ध्यान अपनी ओर जरूर खींच लिया था और अब मैं खुद को सँभल भी रहा था। द्वतीय मासिक परीक्षाओं में मैं क्लास में तीसरे नम्बर पर रहा यहाँ मैं संतुष्ट था लेकिन इस बार में सभी की चर्चाओं का केंद्र बना अब कुछ मित्रता के हाथ मेरी ओर बढ़े मैंने भी अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ऑफर को स्वीकार लिया लेकिन वो आँखे वो वो सख्स जो मेरी आँखों में छुपकर बैठा था अब बाहर आने लगा देखते ही देखते न जाने क्यों उस चहरे को देखकर मुझे बहुत सकूँ मिलता था।लेकिन मुझे नही मालूम था ये क्यों हो रहा था। एक दिन उसकी आँखें मेरी आँखों से कुछ कह गयीं जिसे न वो जानती थी ना मैं बस फिर ये नजरों का सिलसिला कब दिल तक पहुँच गया मुझे मालूम ना चला अब तो रविवार को भी ऐसा लगता का स्कूल खुला होता तो उसे देख पाता अब मेरे हर ख्वाब में वही समा गई। सुबह जल्दी तैयार होकर स्कूल जाता जिससे उसे प्रेर से पहले देख सकूँ और दिन की शुरुआत अच्छी हो, कुछ लोगों के मुँह सुनाता हूँ कि विद्यार्थी जीवन में इश्क़ की लत पढ़ाई को बाधित कर देती है लेकिन मेरे साथ एकदम उल्टा हो रहा था। मैं पहले से अधिक समझ के साथ पढ़ने लगा मुझे लगता कि जब मैं पढ़ रहा होता हूँ वो मुझे देख रही है। टीचर ने जो भी वर्क दिया होता था मैं उसे इसलिए कंप्लीट करता कि कहीं डांट न पड़ जाए और उसके सामने बेज्जती हो इसलिए मैं लिखने और याद करने का काम समय से किया करता था। एकदो बार उसने मेरी नोटबुक से ही अपनी नोटबुक पूरी की तो मैं ये सोचकर भी काम पूरा करता कि न जाने कब वो नोटबुक मांगे। कईबार क्लास में लर्निंग प्रतियोगिताएं होती तो हम भी जीतता या मेरा वो दोस्त जो मुझसे लगभग आगे ही रहता था। लेकिन मेरे जितने की खुशी मुझे इसलिए भी ज्यादा होती थी कि में उसे अपने लिए नही वो जीत मैं उस लड़की के लिए जीतता था। क्लास के सभी लड़के बोलते थे कि वो लड़की सबसे सुंदर है मैंने कभी उसकी सुंदरता को नही परखा क्योंकि वो तो पहली नज़र में ही मेरे दिल और दिमाग में समा गई थी। अब हम दोनों की ये कहानी बहुत अलग मोड़ पर जा रही थी अब तो उसकी नजरें भी मेरे नज़रों का साथ दे रही थी। क्या बयां करूँ उन लम्हों को, जब नजरों में नजरें डाल कर समय बिता लिया करते थे। लेकिन मैं पहली बार इश्क़ कर रहा था। अपने प्यार का इज़हार मुँह से कहकर करूँ और वो ना कह दे या वो भड़क जाए तो क्या होगा ये डर मुझे मेरे प्रेम से दूर ले जा रहा था। वक्त की गाड़ी कब किसके लिए रुकी है। वैसा ही मेरे साथ हो रहा था। लेकिन उसने हिम्मत की और मेरे पास आकर उसने कुछ मांगा उस दिन उसने मानो पूरी क्लास से लड़ाई की हो वो उदास थी और वो केवल ये दिखाने के लिए मेरे पास आई थी कि मैं उससे अपने दिल की बात कह दूं। लेकिन मैं डरा हुआ था।कह नही पा रहा था।